MA Semester-1 Sociology paper-I - CLASSICAL SOCIOLOGICAL TRADITION - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2681
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें

प्रश्न- वेबर का पद्धतिशास्त्र तथा मूल्यांकनात्मक निर्णय क्या हैं? स्पष्ट करो।

उत्तर -

वेबर का पद्धतिशास्त्र तथा मूल्यांकनात्मक निर्णय

बोगार्डस (Bogardus) ने लिखा है, "पद्धतिशास्त्र को मैक्स वेबर की देन यह थी कि उन्होंने सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में वैज्ञानिक पद्धति तथा मूल्यांकनात्मक निर्णय पद्धति में अन्तर किया था। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि मानवीय सम्बन्धों का अध्ययन करते समय इन दोनों पद्धतियों को कदापि मिलने न देना चाहिए। उन्होंने अपने तरीके से समाजशास्त्र के एक विज्ञान के विकास के लिए नींव डाली।" यह वेबर की पद्धतिशास्त्रीय (methodological) गहन अन्तर्दृष्ति (insight) के कारण ही सम्भव हुआ। यह बात निम्नलिखित विवेचना से और भी स्पष्ट हो जाएगी।

मैक्स वेबर के समय तक जर्मनी में यह परम्परा बहुत कुछ दृढ़ हो गई थी कि जिन पद्धतियों से प्राकृतिक विज्ञानों में घटनाओं का अध्ययन और विश्लेषण किया जाता है, उन्हीं पद्धतियों को सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में काम में नहीं लाया जा सकता। इसका तात्पर्य यही हुआ कि जो यथार्थता प्राकृतिक विज्ञानों के अध्ययन तथा निष्कर्षों में होती है, उस यथार्थता की समाजशास्त्रीय अध्ययन व विश्लेषणों में आशा नहीं की जा सकती। सामाजिक घटनाओं की प्रकृति ही कुछ ऐसी है कि उनका -उसी भाँति विवरण मात्र प्रस्तुत किया जा सकता है जैसाकि हमें इतिहास में देखने को मिलता है, क्योंकि सामाजिक विज्ञानों का क्षेत्र विभिन्न रूपों में स्वाधीन इच्छा (तिमम पसस), प्रातीतिक भावनाओं और विचारों तथा बौद्धिक संवेदनशीलता (हमपेज) का क्षेत्र समझा जाता था। इस सम्बन्ध में सबसे बड़ी बात यह थी कि उपरोक्त ऐतिहासिक सम्प्रदाय का यह विश्वास था कि केवल प्राकृतिक विज्ञानों में ही सामान्यीकृत सैद्धातिक श्रेणियों (generalized theoretical categories) का प्रयोग हो सकता है, सामाजिक विज्ञानों में नहीं। सामाजिक विज्ञानों में जो केवल ऐतिहासिक पद्धति के द्वारा ही सामाजिक घटनाओं की व्याख्या और उनमें अन्तर्निहित प्रेरक शक्ति एवं सांस्कृतिक प्रभावों का स्पष्टीकरण किया जा सकता है।

वेबर ने अपने पद्धतिशास्त्र को उपरोक्त ऐतिहासिक सम्प्रदाय की समालोचना से ही प्रारम्भ किया। उनके अनुसार इस सम्प्रदाय का यह कहना गलत है कि वैज्ञानिक आधार पर सामाजिक घटनाओं का अध्ययन नहीं किया जा सकता है। सामजिक घटनाओं का अध्ययन करने वाला वैज्ञानिक अगर चाहे तो अपने अध्ययन में वैज्ञानिक मान (scientific standard) बनाए रख सकता है। दूसरी बात यह है कि सामान्यीकृत सैद्धान्तिक श्रेणियों का प्रयोग न केवल प्राकृतिक विज्ञानों में बल्कि समाजशास्त्र में भी स्वीकार्य है। वास्तव में सामाजिक वैज्ञानिक (social scientist) का सर्वप्रमुख कर्त्तव्य घटनाओं का विवरण मात्र देना ही नहीं बल्कि उनमें पाए जाने वाले कार्य-कारण सम्बन्ध को दर्शाना है। इसके लिए यह आवश्यक नहीं है कि ऐतिहासिक क्रम से सभी विशिष्ट तथ्यों का विश्लेषण तथा स्पष्टीकरण किया जाए। इसके लिए तो केवल इतना ही पर्याप्त होगा कि सबसे महत्त्वपूर्ण परिवर्तनीय तत्त्वों (variable elements) को निश्चित ढंग से पृथक् कर लिया जाएं तथा परिवर्तनीय अवस्थाओं के अन्तर्गत उनकी क्रिया, कार्य तथा प्रभावों का अध्ययन करके उनके कार्य-कारण के महत्त्व को दर्शाया जाए। इसका तात्पर्य यह हुआ कि सामाजिक घटनाओं के परिवर्तनीय तत्त्वों में से समानताओं के आधार पर सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्वों और कुछ सैद्धान्तिक श्रेणियों में बाँट लिया जाए। इस प्रकार से चुने गए तत्त्व सम्पूर्ण घटना की सामान्य विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करेंगे और साथ ही सामाजिक वैज्ञानिक के ध्यान को इधर-उधर के व्यर्थ तत्त्वों में भटकने से भी बचाएँगे। इसलिए ये तत्त्व वैज्ञानिक के लिए आदर्श होंगे। यही वेबर के पद्धतिशास्त्र के बुनियादी शब्द (key term) 'आदर्श रूप' (Ideal Type) हैं जिसकी कि विस्तारपूर्वक विवेचना हम आगे करेंगे। इस प्रकार समाजशास्त्र में 'प्ररूपवादी पद्धति' (typological approach) को चालू करने का श्रेय वैबर को ही है।

इस पद्धति के विषय में वैबर ने लिखा है कि उन्होंने समाजशास्त्र में इसके प्रयोग पर इतना बल इसलिए दिया है क्योंकि उनका विश्वास है कि 'सब-कुछ का अध्ययन', 'कुछ नहीं का अध्ययन' है; अर्थात् जो यह सोचता है कि वह समाज की सभी घटनाओं का अध्ययन कर लेगा, वह वास्तव में कुछ भी अध्ययन नहीं कर सकता। इसका कारण यह है कि सब कुछ का अध्ययन करके वह जो कुछ भी प्रस्तुत करेगा, उसमें कुछ वैज्ञानिक यथार्थता (scientific exactness) हो ही नहीं सकती। इसलिए, आवश्यकता इस बात की है कि सामाजिक घटनाओं में से कुछ ऐसे आदर्श-प्ररूपों या टाइपों को छाँद लिया जाए जिनके अध्ययन से सम्पूर्ण घटना के सम्बन्ध में यथार्थ व वास्तविक ज्ञान प्राप्त हो सके।

परन्तु, वेबर के अनुसार, आदर्श-प्ररूपों को स्वीकार करने का तात्पर्य कदापि यह नहीं है कि हमारा अध्ययन भी आदर्शात्मक होगा और हमारा निष्कर्ष मूल्यांकनात्मक निर्णयों (value-judgements) पर आधारित होगा। वेबर अपने पद्धतिशास्त्र को मूल्यांकनात्मक निर्णयों से बहुत दूर रखने के सम्बन्ध में सदा प्रयत्नशील तथा जागरूक रहे। उनका कथन है कि समाजशास्त्री को मूल्यांकनात्मक निर्णयों को नहीं, अपितु सर्वत्र सत्य वैज्ञानिक विश्लेषण (universally valid scientific analysis) प्रस्तुत करने का प्रयत्न करना चाहिए। मूल्यांकनात्मक निर्णयों पर आस्था रखने वाला समाजशास्त्री अपने तथा अपने विज्ञान को वैज्ञानिक स्तर से नीचें गिरा देता है। परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि मूल्यांकनात्मक क्रियाओं (evaluative actions) का अध्ययन न किया जाए। ऐसा करने से मानवीय क्रियाओं, जोकि समाजशास्त्र का प्रमुख अध्ययन विषय है, का एक भाग समाजशास्त्र के अध्ययन-क्षेत्र से निकल जाएगा। वास्तव में मूल्यांकनात्मक क्रियाओं का सही अध्ययन समाजशास्त्र करेगा, परन्तु करेगा मूल्यांकनात्मक पद्धति या मूल्यांकनात्मक निर्णयों से बहुत दूर रहते हुए ही।

मूल्यांकनात्मक निर्णयों से दूर रहते हुए वैज्ञानिक विश्लेषण करने का एक अन्य वैज्ञानिक तरीका या उपाय यह है कि समाजशास्त्री केवल 'क्या है' के अध्ययन में अपने को सीमित रखे और 'क्या होना चाहिए' की और अग्रसर न हो। इसका अर्थ यह है कि एक घटना (phenomenon) जिस रूप में वास्तव में है उसी रूप में यथार्थ अध्ययन व विश्लेषण किया जाए न कि इस विषय का कि वह घटना अच्छी है या बुरी, उचित है अनुचित या अगर ऐसा होता तो अच्छा होता। अच्छे-बुरे, उचित - अनुचित, 'ऐसा होता तो अच्छा होता' आदि का विश्लेषण करके हम मूल्यांकनात्मक निर्णयों तक पहुँच सकते हैं, न कि वैज्ञानिक सत्य या यथार्थता तक।

मैक्स वेबर के समाजशास्त्र के विषय में विवेचना करते समय हम यह लिख चुके हैं कि आप अपने समाजशास्त्र को एक विज्ञान के रूप में सुप्रतिष्ठित करने के लिए एक ऐसे पद्धतिशास्त्र का विकास करना चाहते हैं जिसके द्वारा (क) सामाजिक सम्बन्धों एवं ऐतिहासिक उद्विकास के विशिष्ट तथा विभेदक पक्षों को अध्ययन, (ख) सामाजिक जीवन की बुनियादी गतिविधियों तथा कार्यों के अन्तर्निहित कारणों का निर्धारण, तथा (ग) विभिन्न सांस्कृतिक तत्वों की अन्तः क्रिया की व्याख्या प्रस्तुत की जा सके। समाजशास्त्र के पद्धतिशास्त्र की सार्थकता इसी में निहित है। यह बात वेबर के पद्धतिशास्त्र की आधारशिला 'आदर्श प्ररूप' की निम्नलिखित विवेचना से और भी स्पष्ट हो जाएगी।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  2. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की विवेचना कीजिये।
  3. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  4. प्रश्न- समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास के विभिन्न चरणों की व्याख्या कीजिये।
  5. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिये।
  6. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विकास की प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिये।
  7. प्रश्न- सामाजिक विचारधारा की प्रकृति व उसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- ज्ञान का समाजशास्त्र क्या है? दुर्खीम के अनुसार इसकी विवेचना कीजिए।
  9. प्रश्न- 'दुर्खीम बौद्धिक पक्ष' की विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
  11. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में दुर्खीम का योगदान बताइये।
  12. प्रश्न- विसंगति की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  13. प्रश्न- कॉम्ट तथा दुर्खीम की देन की तुलना कीजिये।
  14. प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्रीय योगदान बताइये।
  15. प्रश्न- 'दुर्खीम ने समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति को समृद्ध बनाया' व्याख्या कीजिये।
  16. प्रश्न- दुर्खीम की कृतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट करें।
  17. प्रश्न- इमाइल दुर्खीम के जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिये।
  18. प्रश्न- दुर्खीम के समाजशास्त्रीय प्रत्यक्षवाद के नियम बताइए।
  19. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या-सिद्धान्त की आलोचनात्मक जाँच कीजिये।
  20. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त के क्या प्रकार हैं?
  21. प्रश्न- आत्महत्या का परिचय, अर्थ, परिभाषा तथा कारण बताइये।
  22. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त की विवेचना करते हुए उसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  24. प्रश्न- 'आत्महत्या सामाजिक कारकों की उपज है न कि वैयक्तिक कारकों की। दुर्खीम के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- आत्महत्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- अहम्वादी आत्महत्या के सम्बन्ध में दुर्खीम के विचारों की विवेचना कीजिए।
  27. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों की विवेचना कीजिए।
  28. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त को परिभाषित कीजिये।
  29. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार 'विसंगत आत्महत्या' क्या है?
  30. प्रश्न- आत्महत्या का समाज के साथ व्यक्ति के एकीकरण की समस्या।
  31. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विवेचना कीजिए।
  32. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विशेषताएँ लिखिए।
  33. प्रश्न- सामाजिक तथ्य की अवधारणा की विस्तृत व्याख्या कीजिये।
  34. प्रश्न- बाह्यता (Exteriority) एवं बाध्यता (Constraint) क्या है? वर्णन कीजिये।
  35. प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य की व्याख्या किस प्रकार की है?
  36. प्रश्न- समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम' पुस्तक में दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य को कैसे परिभाषित किया है?
  37. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्य की विशेषताओं का मूल्यांकन कीजिए।
  38. प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों के लिये कौन-कौन से नियमों का उल्लेख किया है?
  39. प्रश्न- दुर्खीम ने सामान्य और व्याधिकीय तथ्यों में किस आधार पर अंतर किया है?
  40. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा निर्णीत “अपराध एक सामान्य सामाजिक तथ्य है" को रॉबर्ट बीरस्टीड मानने को तैयार नहीं है। स्पष्ट करें।
  41. प्रश्न- अपराध सामूहिक भावनाओं पर आघात है। स्पष्ट कीजिये।
  42. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार दण्ड क्या है?
  43. प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म और जादू में क्या अंतर किये हैं?
  44. प्रश्न- टोटमवाद से दुर्खीम का क्या अर्थ है?
  45. प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म के किन-किन प्रकार्यों का उल्लेख किया है?
  46. प्रश्न- दुर्खीम का धर्म का क्या सिद्धांत है?
  47. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्यों की अवधारणा पर प्रकाश डालिये।
  48. प्रश्न- दुर्खीम के धर्म के सामाजिक सिद्धान्तों को विश्लेषित कीजिए।
  49. प्रश्न- दुर्खीम ने अपने पूर्ववर्तियों की धर्म की अवधारणों की आलोचना किस प्रकार की है।
  50. प्रश्न- दुर्खीम के धर्म की अवधारणा को विशेषताओं सहित स्पष्ट करें।
  51. प्रश्न- दुर्खीम की धर्म की अवधारणा का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
  52. प्रश्न- धर्म के समाजशास्त्र के क्षेत्र में दुर्खीम और वेबर के योगदान की तुलना कीजिए।
  53. प्रश्न- पवित्र और अपवित्र, सर्वोच्च देवता के रूप में समाज धार्मिक अनुष्ठान और उनके प्रकार बताइये।
  54. प्रश्न- टोटमवाद क्या है? व्याख्या कीजिये।
  55. प्रश्न- 'कार्ल मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  57. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक युगों के विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
  58. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  59. प्रश्न- मार्क्स की वैचारिक या वैचारिकी के सिद्धान्त का विश्लेषण कीजिए।
  60. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाव को कैसे समाप्त किया जा सकता है?
  61. प्रश्न- मार्क्स का 'आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त' बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता समझाइए।
  62. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  64. प्रश्न- आदिम साम्यवादी युग में वर्ग और श्रम विभाजन का कौन-सा स्वरूप पाया जाता था?
  65. प्रश्न- दासत्व युग में वर्ग व्यवस्था की व्याख्या कीजिये।
  66. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  67. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  68. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  69. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही है?
  70. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  71. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के "द्वन्द्वात्मक भौतिकवादी सिद्धान्त" का मूल्याकंन कीजिए।
  72. प्रश्न- कार्ल मार्क्स की वर्गविहीन समाज की अवधारणा को संक्षेप में समझाइए।
  73. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के राज्य सम्बन्धी विचारों की विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- पूँजीवादी व्यवस्था तथा राज्य में क्या सम्बन्ध है?
  75. प्रश्न- मार्क्स की राज्य सम्बन्धी नई धारणा राज्य तथा सामाजिक वर्ग के बार में समझाइये।
  76. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य के रूप में विखंडित, ऐतिहासिक, भौतिकवादी अवधारणा बताइये |
  77. प्रश्न- स्तरीकरण के प्रमुख सिद्धांत बताइये।
  78. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?
  79. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  81. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  82. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  83. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  84. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही हैं?
  85. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  86. प्रश्न- समाजशास्त्र को मार्क्स का क्या योगदान मिला?
  87. प्रश्न- मार्क्स ने समाजवाद को क्या योगदान दिया?
  88. प्रश्न- साम्यवादी समाज के निर्माण के लिये मार्क्स ने क्या कार्य पद्धति सुझाई?
  89. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में मार्क्स के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  91. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  92. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  93. प्रश्न- मार्क्स द्वारा प्रस्तुत वर्ग संघर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए।
  94. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  95. प्रश्न- सर्वहारा क्रान्ति की विशेषताएँ बताइये।
  96. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाववाद के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए।
  97. प्रश्न- मार्क्स का आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता बताइए।
  98. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषतायें बताइये।
  99. प्रश्न- मैक्स वेबर के बौद्धिक पक्ष के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालिये।
  100. प्रश्न- वेबर का समाजशास्त्र में क्या योगदान है?
  101. प्रश्न- वेबर के अनुसार सामाजिक क्रिया क्या है? सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रचारों का वर्णन भी कीजिए।
  102. प्रश्न- सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रकार क्या हैं?
  103. प्रश्न- नौकरशाही किसे कहते हैं? वेबर के नौकरशाही सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  104. प्रश्न- वेबर का नौकरशाही सिद्धान्त क्या है?
  105. प्रश्न- नौकरशाही की प्रमुख विशेषताएँ बतलाइये।
  106. प्रश्न- सत्ता क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- मैक्स वैबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित किजिये।
  108. प्रश्न- वेबर का पद्धतिशास्त्र तथा मूल्यांकनात्मक निर्णय क्या हैं? स्पष्ट करो।
  109. प्रश्न- आदर्श प्ररूप की धारणा का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- करिश्माई सत्ता के मुख्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
  111. प्रश्न- 'प्रोटेस्टेण्ट आचार और पूँजीवाद की आत्मा' सम्बन्धी मैक्स वेबर के सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- कार्य प्रणाली का योगदान या कार्य प्रणाली का अर्थ, परिभाषा बताइये।
  113. प्रश्न- मैक्स वेबर के 'आदर्श प्रारूप' की विवेचना कीजिए।
  114. प्रश्न- मैक्स वैबर का संक्षिप्त जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों का वर्णन कीजिये।
  115. प्रश्न- मैक्स वेबर का बौद्धिक दृष्टिकोण क्या है?
  116. प्रश्न- सामाजिक क्रिया को स्पष्ट कीजिये।
  117. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा दिये गये सामाजिक क्रिया के प्रकारों की विवेचना कीजिए।
  118. प्रश्न- वैबर के अनुसार सामाजिक वर्ग और स्थिति क्या है? बताइये।
  119. प्रश्न- वेबर का सामाजिक संगठन का सिद्धान्त क्या है? बताइये।
  120. प्रश्न- वेबर का धर्म का समाजशास्त्र क्या है? बताइये।
  121. प्रश्न- धर्म के सम्बन्ध में कार्ल मार्क्स तथा मैक्स वेबर के विचारों की तुलना कीजिए।
  122. प्रश्न- वेबर ने शक्ति को किस प्रकार समझाया?
  123. प्रश्न- नौकरशाही के दोष समझाइए?
  124. प्रश्न- वेबर के पद्धतिशास्त्र में आदर्श प्रारूप की अवधारणा का क्या महत्त्व है?
  125. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा प्रदत्त आदर्श प्रारूप की विशेषताएँ बताइये। .
  126. प्रश्न- वेबर की आदर्श प्रारूप की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
  127. प्रश्न- डिर्क केसलर की आदर्श प्रारूप हेतु क्या विचारधाराएँ हैं?
  128. प्रश्न- मैक्सवेबर के अनुसार दफ्तरी कार्य व्यवस्थाएँ किस तरह की होती हैं?
  129. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, कर्मचारी-तंत्र के कौन-कौन से कारण हैं? स्पष्ट करें।
  130. प्रश्न- 'मैक्स वेबर ने कर्मचारी तंत्र का मात्र औपचारिक रूप से ही अध्ययन किया है।' स्पष्ट करें।
  131. प्रश्न- रोबर्ट मार्टन ने कर्मचारी तंत्र के दुष्कार्य क्या बताये हैं?
  132. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, 'कार्य ही जीवन तथा कुशलता ही धन है' किस तरह से?
  133. प्रश्न- “जो व्यक्ति व्यवसाय में कुशल है, धन और समाज दोनों ही पाते हैं।" मैक्स वेबर की विचारधारा पर स्पष्ट करें।
  134. प्रश्न- मैक्स वेबर की धर्म के समाजशास्त्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं? स्पष्ट करें।
  135. प्रश्न- मैक्स वेबर का पद्धतिशास्त्र क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
  136. प्रश्न- वेबर का धर्म का सिद्धान्त क्या है?
  137. प्रश्न- वेबर का पूँजीवाद समाज में नौकरशाही व्यवस्था पर लेख लिखिये।
  138. प्रश्न- प्रोटेस्टेन्टिजम और पूँजीवाद के बीच सम्बन्धों पर वेबर के विचारों की विवेचना कीजिए।
  139. प्रश्न- वेबर द्वारा प्रतिपादित आदर्श प्ररूप की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  140. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा क्या है?
  141. प्रश्न- परेटो के अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
  142. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा का वर्णन कीजिये।
  143. प्रश्न- विलफ्रेडो परेटो की प्रमुख कृतियों के साथ संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  144. प्रश्न- पैरेटो के “सामाजिक क्रिया सिद्धान्त का परीक्षण कीजिए?
  145. प्रश्न- परेटो के अनुसार तर्कसंगत और अतर्कसंगत क्रियाओं की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  146. प्रश्न- परेटो ने अतर्कसंगत क्रियाओं को कैसे समझाया?
  147. प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए एवं महत्व बताइये।
  148. प्रश्न- विशिष्ट चालक का महत्व बताइये।
  149. प्रश्न- पैरेटो के भ्रान्त-तर्क के सिद्धांत की विवेचना कीजिए।
  150. प्रश्न- पैरेटो के 'अवशेष' के सिद्धांत का क्या महत्त्व है?
  151. प्रश्न- भ्रान्त तर्क की अवधारणा क्या है?
  152. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क का वर्गीकरण कीजिये।
  153. प्रश्न- संक्षेप में परेटो का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
  154. प्रश्न- पैरेटो की मानवीय क्रियाओं के वर्गीकरण की चर्चा कीजिये।
  155. प्रश्न- तार्किक क्रिया व अतार्किक क्रिया में अन्तर स्पष्ट कीजिये।

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